बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर(Karpoori Thakur)
केंद्र सरकार ने मंगलवार को बिहार के पू्र्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (मरणोपरांत) देने की घोषणा की। केंद्र सरकार ने आखिरी बार 2019 में भूपेन हजारिका को भारत रत्न से नवाजा था जिसके बाद अब ये उपाधि कर्पूरी ठाकुर(Karpoori Thakur) को दी जाएगी। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा जाएगा। उन्हें पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए पहचान मिली हुई थी, जिन्हें अब मोदी सरकार ने भारत का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत रत्न देने का एलान किया है | 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा हुई है।
कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती :
आम तौर पर केंद्र सरकार गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों और कभी-कभी भारत रत्न का एलान करती है। इस बार सरकार ने गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले ही भारत रत्न के बारे में एलान कर दिया है। 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती की पूर्व संध्या पर उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा हुई है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की मांग लंबे समय से उठ रही थी. मंगलवार (22 जनवरी) को जेडीयू नेता केसी त्यागी ने ठाकुर को भारत रत्न देने के साथ-साथ उनके नाम पर विश्वविद्यालय खोलने की मांग की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(PM Narendra Modi)
मंगलवार (22 जनवरी) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से करपूरी ठाकुर की एक तस्वीर साझा करते हुए पोस्ट में लिखा, “मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक महान जननायक करपूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं. यह प्रतिष्ठित मान्यता हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक योद्धा और समानता और सशक्तीकरण के दिग्गज के रूप में उनके स्थायी प्रयासों का एक प्रमाण है.”
प्रधानमंत्री ने लिखा, “दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है. यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है बल्कि हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है.”
स्वतंत्रता सेनानी
कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और अपने योगदान के लिए जेल भी गए। उनका जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गांव में हुआ था। वह छात्र जीवन में राष्ट्रवादी विचारों के प्रभाव में आए और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हो गए। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी सहभागी बनने के लिए अपना स्नातक कॉलेज छोड़ दिया था और स्वतंत्रता आंदोलन में 26 महीने तक जेल में रहे।
कर्पूरी ठाकुर ने 28 दिनों तक आमरण अनशन भी किया और देश को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्रता मिलने के बाद, वह अपने गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने बिहार विधानसभा के सदस्य बने और 1960 में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान गिरफ्तार हो गए। 1970 में उन्होंने टेल्को मजदूरों के हितों के लिए 28 दिनों तक आमरण अनशन किया।
कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करने का भी समर्थन किया और हिंदी भाषा के समर्थक बनकर उन्होंने अंग्रेजी को मैट्रिक पाठ्यक्रम से हटा दिया। उन्होंने बिहार के मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में भी सेवा की और बिहार में शिक्षा क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किए। उनके शासनकाल में पिछड़े इलाकों में विकास के लिए कई कदम उठाए गए।
कर्पूरी ठाकुर जयप्रकाश नारायण के करीबी थे और आपातकाल (1975-77) के दौरान उन्होंने और जनता पार्टी के अन्य नेताओं के साथ संपूर्ण क्रांति आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्हें देश में समाज के अहिंसक परिवर्तन के लक्ष्य के लिए सम्मानित किया जाता है।
कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और अपने योगदान के लिए जेल भी गए। उनका जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) गांव में हुआ था। वह छात्र जीवन में राष्ट्रवादी विचारों के प्रभाव में आए और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन में शामिल हो गए। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी सहभागी बनने के लिए अपना स्नातक कॉलेज छोड़ दिया था और स्वतंत्रता आंदोलन में 26 महीने तक जेल में रहे।
कर्पूरी ठाकुर ने 28 दिनों तक आमरण अनशन भी किया और देश को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्रता मिलने के बाद, वह अपने गांव के स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने बिहार विधानसभा के सदस्य बने और 1960 में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की हड़ताल के दौरान गिरफ्तार हो गए। 1970 में उन्होंने टेल्को मजदूरों के हितों के लिए 28 दिनों तक आमरण अनशन किया।
कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करने का भी समर्थन किया और हिंदी भाषा के समर्थक बनकर उन्होंने अंग्रेजी को मैट्रिक पाठ्यक्रम से हटा दिया। उन्होंने बिहार के मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में भी सेवा की और बिहार में शिक्षा क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किए। उनके शासनकाल में पिछड़े इलाकों में विकास के लिए कई कदम उठाए गए।